
महाराष्ट्र और झारखंड में विधानसभा चुनाव संपन्न हो गए हैं, और अब हर किसी को 23 नवंबर का बेसब्री से इंतजार है, जब नतीजे सामने आएंगे। उससे पहले, एग्जिट पोल ने राजनीतिक गलियारों में उत्सुकता बढ़ा दी है।
ज्यादातर एग्जिट पोल ने भाजपा को बड़ी खुशखबरी दी है। महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना गठबंधन वाली महायुति को स्पष्ट बढ़त मिलती दिख रही है। वहीं झारखंड में भी भाजपा गठबंधन के लिए सत्ता का रास्ता साफ नजर आ रहा है।
हालांकि, कुछ एग्जिट पोल ने दोनों राज्यों में करीबी मुकाबले की ओर भी इशारा किया है। झारखंड में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाला गठबंधन भाजपा के लिए चुनौती बन सकता है, जबकि महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और एनसीपी-कांग्रेस का गठबंधन अपने आधार को बचाने में संघर्ष करता दिख रहा है।
राजनीति के अखाड़े में इन दिनों तीन बड़े नाम चर्चा में हैं – झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, महाराष्ट्र में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे, और मौजूदा मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे। तीनों ही अपने-अपने राज्यों में सियासी समीकरण बदलने में माहिर माने जाते हैं।
हेमंत सोरेन झारखंड में आदिवासी राजनीति के मजबूत चेहरा बने हुए हैं। उनके खिलाफ चल रही कानूनी चुनौतियों के बावजूद, वे अपनी “ग्रासरूट कनेक्ट” के दम पर सत्ता में मजबूती से टिके हैं। उनकी योजनाएं और लोकलुभावन नीतियां ग्रामीण वोटरों को आकर्षित कर रही हैं।
दूसरी ओर, महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे और एकनाथ शिंदे के बीच का “राजनीतिक महायुद्ध” जारी है। उद्धव, जो शिवसेना की परंपरागत राजनीति के प्रतीक हैं, अपने पिता बाल ठाकरे की विरासत को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। वहीं, एकनाथ शिंदे ने अपने बगावती तेवरों से न केवल शिवसेना को दो हिस्सों में बांटा, बल्कि सत्ता पर भी अपनी पकड़ बनाई।
राजनीति के इस त्रिकोण में सबसे बड़ा सवाल यह है कि:
- हेमंत सोरेन अपने राजनीतिक संकटों को कैसे संभालेंगे?
- उद्धव ठाकरे क्या फिर से शिवसेना का पूरा नियंत्रण हासिल कर पाएंगे?
- और एकनाथ शिंदे कितनी दूर तक अपनी बगावत का परचम लहरा सकेंगे?
विशेषज्ञों का मानना है कि तीनों नेता अपने-अपने राज्यों में न केवल सियासी समीकरणों को प्रभावित करेंगे, बल्कि राष्ट्रीय राजनीति पर भी गहरा असर डाल सकते हैं।