
Education: मीडिया शिक्षा के भविष्य को लेकर वरिष्ठ पत्रकार और भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC) के पूर्व महानिदेशक प्रो. संजय द्विवेदी ने कहा है कि आज पत्रकारिता शिक्षा एक बड़े संक्रमण काल से गुजर रही है। उन्होंने कहा कि जहां एक ओर तकनीक और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) पत्रकारिता के पारंपरिक तौर-तरीकों को तेजी से बदल रही है, वहीं दूसरी ओर मीडिया शिक्षा के सामने अपनी वैचारिक स्पष्टता और प्रासंगिकता को बनाए रखने की भी चुनौती है।
प्रो. द्विवेदी के अनुसार, मीडिया शिक्षा की जड़ें भारत में 100 वर्षों से भी पुरानी हैं। वर्ष 1920 में मद्रास में पहला पत्रकारिता कोर्स शुरू हुआ था, फिर 1938 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में सर्टिफिकेट कोर्स और 1941 में पंजाब विश्वविद्यालय में पत्रकारिता विभाग की स्थापना हुई। स्वतंत्र भारत में 1947 में मद्रास विश्वविद्यालय में जनसंचार विभाग की नींव पड़ी, जिसके बाद कोलकाता, मैसूर, हैदराबाद, नागपुर जैसे शहरों में पत्रकारिता संस्थान उभरे। 1965 में IIMC की स्थापना के बाद देश भर में पत्रकारिता शिक्षा ने व्यापक विस्तार किया।
वर्तमान मीडिया शिक्षा के सामने दो प्रमुख समस्याएं हैं – पहली, यह असमंजस कि शिक्षा तकनीकी कौशल पर केंद्रित हो या वैचारिक गहराई पर; और दूसरी, विदेशी पाठ्यपुस्तकों पर अत्यधिक निर्भरता। प्रो. द्विवेदी का मानना है कि भारतीय संदर्भों पर आधारित पाठ्यसामग्री तैयार करना और अनुभवी पत्रकारों को शिक्षण में शामिल करना मीडिया शिक्षा को वास्तविक और उपयोगी बनाएगा।
उन्होंने सुझाव दिया कि एक “मीडिया एजुकेशन काउंसिल” की स्थापना होनी चाहिए, जो तकनीकी विशेषज्ञों, शिक्षाविदों और उद्योगजगत के प्रतिनिधियों को साथ लेकर मीडिया शिक्षा की दिशा तय करे। इसके साथ ही उन्होंने डिजिटल और न्यू मीडिया को पाठ्यक्रमों में पूरी तरह शामिल करने, प्रिंट और डिजिटल के संतुलन वाले मॉडल को अपनाने और स्थानीय भाषाओं में शिक्षा को प्राथमिकता देने पर जोर दिया।
प्रो. द्विवेदी ने स्पष्ट किया कि आने वाला समय टेक्नोलॉजी से भागने का नहीं, बल्कि उसे अपनाने और उसके साथ वैचारिक स्पष्टता बनाए रखने का है। मीडिया शिक्षा तभी प्रासंगिक और प्रभावी बनेगी जब वह अपनी जड़ों से जुड़ी होगी और भविष्य की चुनौतियों के लिए छात्रों को तैयार कर पाएगी।