
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में वक्फ (संशोधन) अधिनियम 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। यह अधिनियम हाल ही में पारित किया गया है, जिसे लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन भी हो रहे हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह कानून मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता और वक्फ संपत्तियों पर उनके अधिकारों का हनन करता है। वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि यह अधिनियम बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के वक्फ संपत्तियों के अधिग्रहण का रास्ता खोलता है, जिससे परंपरा से चली आ रही धार्मिक स्थलों की पहचान को खतरा हो सकता है।
वहीं केंद्र सरकार ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि यह कानून पूरी तरह पारदर्शी प्रक्रिया के तहत लाया गया है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बताया कि संसद की संयुक्त समिति (JPC) की 96 बैठकों में करीब 97 लाख लोगों से सुझाव लिए गए, जिसके बाद यह कानून अस्तित्व में आया। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह कानून केवल वक्फ संपत्तियों के धर्मनिरपेक्ष मामलों से जुड़ा है और इसका धार्मिक गतिविधियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी प्रकार की अंतरिम राहत के लिए याचिकाकर्ताओं को “प्रबल और स्पष्ट आधार” प्रस्तुत करना होगा। अदालत ने यह भी जानना चाहा कि क्या यह कानून वास्तव में कुछ संपत्तियों की वक्फ की स्थिति को समाप्त करता है। इस बीच, देश के कई हिस्सों में मुस्लिम संगठनों और राजनीतिक दलों की ओर से इस कानून के खिलाफ प्रदर्शन जारी हैं। कुछ स्थानों पर विरोध प्रदर्शन हिंसक भी हो चुके हैं।
अब देशभर की निगाहें सुप्रीम कोर्ट के आगामी फैसले पर टिकी हैं, जो यह तय करेगा कि यह कानून संवैधानिक रूप से वैध है या नहीं और इसका समुदाय की धार्मिक व संपत्ति संबंधी अधिकारों पर क्या प्रभाव पड़ेगा।
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