
Patna: बिहार विधानसभा में एक बार फिर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव पर तीखा हमला बोला। उन्होंने तेजस्वी के माता-पिता—लालू प्रसाद यादव और राबड़ी देवी—के शासनकाल पर सवाल उठाते हुए तेजस्वी को ‘बच्चा’ कहकर तंज कस दिया। नीतीश ने कहा, “तुम्हारे मां-बाप ने क्या किया? कुछ नहीं!” उनका यह बयान विधानसभा में हलचल का कारण बन गया।
अब सवाल यह है कि नीतीश कुमार का यह बार-बार ‘मां-बाप’ पर केंद्रित हमला महज एक ताना है या इसके पीछे 2025 के विधानसभा चुनावों को लेकर एक रणनीति छुपी है? क्या लालू-राबड़ी के कार्यकाल को निशाना बनाना नीतीश के लिए हमेशा की तरह फिर से एक कारगर चुनावी अस्त्र साबित होगा?
असल में, नीतीश कुमार लंबे समय से लालू-राबड़ी शासन को ‘जंगलराज’ कहकर जनता के सामने प्रस्तुत करते आए हैं। 1997 में पटना हाईकोर्ट ने राबड़ी सरकार को लेकर जो टिप्पणी की थी, वह आज भी राजनीतिक विमर्श में जीवित है। नीतीश इसी छवि का सहारा लेकर अपने ‘सुशासन बाबू’ की छवि को बार-बार चमकाते हैं। इस बार विधानसभा में भी उन्होंने अपने शासन की उपलब्धियों को गिनाते हुए लालू-राबड़ी युग की असफलताओं को गिनाया और तेजस्वी पर सीधा वार किया।
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि नीतीश की यह रणनीति कई स्तरों पर काम करती है। एक ओर वे लालू-राबड़ी के दौर की अराजकता, भ्रष्टाचार और अपराध की याद दिलाकर वोटरों को सचेत करते हैं, वहीं दूसरी ओर तेजस्वी यादव की युवा और उभरती छवि को कमज़ोर करने की कोशिश करते हैं। खासकर जब तेजस्वी रोजगार, आरक्षण और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर आक्रामक रुख अपनाते हैं, तो नीतीश उन्हें ‘बच्चा’ कहकर उनके अनुभव और परिपक्वता पर सवाल खड़े करते हैं।
हाल ही में एक सर्वे में यह सामने आया कि युवाओं में राहुल गांधी और तेजस्वी यादव को सीएम पद के लिए ज़्यादा समर्थन मिल रहा है, जबकि नीतीश का ग्राफ कुछ गिरा है। ऐसे में तेजस्वी की बढ़ती लोकप्रियता नीतीश के लिए एक चुनौती बन चुकी है। शायद यही वजह है कि नीतीश उन्हें बार-बार उनके माता-पिता की ‘विवादित विरासत’ से जोड़ने की कोशिश कर रहे हैं।
इस पूरी रणनीति के ज़रिए नीतीश जहां सवर्ण, महिला और अतिपिछड़े वोटरों को अपनी तरफ बनाए रखना चाहते हैं, वहीं एनडीए की एकजुटता का भी संदेश देते हैं। दूसरी तरफ, तेजस्वी अब ‘जंगलराज 2.0’ का जवाब देकर अपना नैरेटिव गढ़ रहे हैं।
इस तरह, यह सीधा हमला केवल व्यक्तिगत आलोचना नहीं बल्कि एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है—जहां पुरानी छवि बनाम नई अपील के बीच 2025 की लड़ाई लड़ी जा रही है।