मेरठ: मेरठ का प्रसिद्ध वाद्ययंत्र बिगुल अब आधिकारिक तौर पर जियोग्राफिकल इंडिकेशन (GI) टैग हासिल कर चुका है। इस टैग के मिलने के बाद मेरठ का बिगुल न केवल देश में बल्कि दुनिया भर में अपनी अलग पहचान के साथ जाना जाएगा। मेरठ में बिगुल का निर्माण सबसे पहली बार 1885 में जली कोठी क्षेत्र में हुआ था, और इसी शहर की मशहूर कंपनी नादर अली एंड कंपनी ने इसके व्यवसाय की शुरुआत की थी।

आज मेरठ में लगभग 500 छोटी-बड़ी कंपनियाँ बिगुल बनाने के काम में लगी हुई हैं। GI टैग मिलने से न केवल कारीगरों की आय बढ़ेगी, बल्कि नकली उत्पादों पर रोक लगाने में भी मदद मिलेगी। इस उपलब्धि से व्यापारी और कारीगर बहुत खुश हैं और उन्होंने सरकार से ओडीओपी योजना में शामिल करने, लोन सुविधा देने और औद्योगिक पार्क या क्लस्टर बनाने का आग्रह भी किया है।

इतिहासिक दृष्टि से भी बिगुल का विशेष महत्व है। यह 1857 की क्रांति में भी इस्तेमाल हुआ और आज भी सैन्य परेड, स्कूलों और आयोजनों में बजाया जाता है। GI टैग मिलने के बाद उम्मीद जताई जा रही है कि मेरठ का बिगुल अब स्थानीय सीमाओं से बाहर, अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी अपनी पहचान बनाएगा।