
आज से संसद का शीतकालीन सत्र शुरू हो गया है, जो कई अहम मुद्दों और विधेयकों पर चर्चा के लिए विशेष माना जा रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सत्र की शुरुआत से पहले मीडिया से बात करते हुए सांसदों से स्वस्थ चर्चा करने और लोकतंत्र को मजबूत करने की अपील की। उन्होंने कहा कि यह सत्र संविधान के 75वें वर्ष का प्रतीक है और इसे लोकतांत्रिक मूल्यों को और सशक्त बनाने का अवसर बनाना चाहिए।
प्रधानमंत्री ने विपक्ष पर संसद की कार्यवाही बाधित करने का आरोप लगाते हुए कहा कि संसद में सार्थक चर्चा के बजाय कुछ लोग इसे राजनीतिक स्वार्थ के लिए बाधित करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने नए सांसदों को उनके विचारों और ऊर्जा को अवसर देने पर जोर दिया।
इस सत्र में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस और निर्णय की उम्मीद है, जिसमें महिलाओं के आरक्षण, विकास योजनाओं और अन्य विधेयकों पर चर्चा शामिल है। पीएम मोदी ने उम्मीद जताई कि यह सत्र प्रेरणादायक और देश के भविष्य के लिए परिणामकारी साबित होगा।
संसद के शीतकालीन सत्र की शुरुआत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मीडिया से बातचीत में कहा, “साल 2024 का यह अंतिम कालखंड चल रहा है। देश पूरी उमंग और उत्साह के साथ 2025 के स्वागत की तैयारी में लगा हुआ है। यह सत्र कई मायनों में विशेष है, क्योंकि हमारा संविधान अपनी 75 साल की यात्रा में प्रवेश कर चुका है। यह लोकतंत्र के लिए एक उज्जवल अवसर है।”
‘मुट्ठी भर लोग संसद को नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं’
प्रधानमंत्री ने संविधान के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, “संविधान निर्माताओं ने गहन विचार-विमर्श के बाद हमें यह उत्तम दस्तावेज दिया है। यह हमारे लोकतंत्र की नींव है, और संसद इसकी प्रमुख इकाई है। दुर्भाग्यवश, कुछ लोग अपने राजनीतिक स्वार्थ के लिए संसद की कार्यवाही बाधित करने का प्रयास करते हैं। जिनको जनता ने अस्वीकार कर दिया है, वे संसद में हुड़दंग के माध्यम से इसे नियंत्रित करने की कोशिश कर रहे हैं।”
उन्होंने कहा, “यह व्यवहार लोकतंत्र की भावना का अनादर है। जनता उनके व्यवहार को देखती है और समय आने पर उन्हें सजा भी देती है। इससे सबसे ज्यादा नुकसान नए सांसदों को होता है, जो नई ऊर्जा और विचारों के साथ आते हैं। उनके अधिकारों को दबाया जाता है, और उन्हें बोलने का अवसर नहीं मिलता।”
‘जिन्हें जनता ने नकारा, वे लोकतंत्र का अनादर करते हैं’
पीएम मोदी ने विपक्ष के रवैये पर सवाल उठाते हुए कहा, “लोकतांत्रिक परंपराओं में हर पीढ़ी का कर्तव्य है कि वह अगली पीढ़ी को तैयार करे। लेकिन जिन लोगों को 80-90 बार जनता ने नकारा है, वे न तो संसद में चर्चा होने देते हैं और न लोकतांत्रिक मूल्यों का सम्मान करते हैं। वे जनता की आकांक्षाओं को समझने में विफल रहते हैं, जिसके कारण जनता को उन्हें बार-बार अस्वीकार करना पड़ता है।”
प्रधानमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि लोकतंत्र में जनता की भावनाओं और अपेक्षाओं का सम्मान करना अत्यावश्यक है। “हम सबको जनता-जनार्दन की भावनाओं का आदर करना होगा और उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए मेहनत करनी होगी,” उन्होंने कहा।
‘जनता की अपेक्षाओं पर खरा उतरना हमारी जिम्मेदारी’
प्रधानमंत्री ने कहा कि संसद में स्वस्थ चर्चा केवल वर्तमान के लिए ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बनेगी। “हमने पहले ही बहुत समय गंवा दिया है। अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि संसद की कार्यवाही को सार्थक और प्रेरणादायक बनाएं। यह सत्र भारत की वैश्विक गरिमा को और ऊंचा उठाने वाला हो। नए सांसदों और उनके विचारों को महत्व दिया जाए।”
प्रधानमंत्री ने सांसदों से अपील करते हुए कहा, “यह समय आत्ममंथन और प्रायश्चित का है। मैं आशा करता हूं कि यह सत्र बहुत ही परिणामकारी होगा और भारत को प्रगति के नए पथ पर ले जाने में सहायक बनेगा।”