
श्याम बेनेगल सिनेमा के प्रति अपने जुनून और अटूट समर्पण के लिए जाने जाते थे। उन्होंने कभी भी हालात, शर्तों, या बीमारी के आगे हार नहीं मानी। उनकी फिल्मों ने न केवल समाज को आईना दिखाया, बल्कि जनता को जागरूक करने और बदलाव के लिए प्रेरित करने का भी काम किया। वे सिनेमा को संघर्ष की गाथा प्रस्तुत करने का सबसे बड़ा हथियार मानते थे।
“अंकुर” से लेकर “मुजीब: द मेकिंग ऑफ ए नेशन” तक, उनकी हर फिल्म ने भारतीय समाज की विविधताओं और जटिलताओं को गर्व के साथ दुनिया के मंच पर प्रस्तुत किया। उन्होंने यह साबित किया कि एक फिल्ममेकर केवल एक तकनीकी विशेषज्ञ नहीं, बल्कि एक संवेदनशील रचनाकार भी होता है। उनकी फिल्मों में सामाजिक यथार्थ और मानवीय भावनाओं का अद्भुत संगम दिखता है।
पिछले 4-5 सालों से उनकी तबीयत ठीक नहीं थी, लेकिन उनके भीतर का सिनेमाई जुनून कभी कम नहीं हुआ। 90वें जन्मदिन पर भी उन्होंने नई फिल्मों की योजनाओं का जिक्र किया। उनकी आखिरी फिल्म “मुजीब: द मेकिंग ऑफ ए नेशन”, जो कोरोना काल और उनकी व्यक्तिगत बीमारी के दौरान बनाई गई थी, उनके दृढ़ संकल्प और जुनून का प्रमाण है। इस फिल्म को पूरा करने के बाद भी उन्होंने कहा था कि वे भविष्य की नई योजनाओं पर काम करने की कोशिश करेंगे।
श्याम बेनेगल का जीवन सिनेमा के प्रति समर्पण और संघर्ष की प्रेरणा है। वे सिर्फ एक फिल्ममेकर नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा के इतिहास में एक ऐसा अध्याय थे, जो सच्चाई और संवेदनशीलता का प्रतीक है। उनकी विरासत और जुनून हमेशा सिनेमा प्रेमियों और अगली पीढ़ी के फिल्मकारों को प्रेरित करता रहेगा।
फिल्म इंडस्ट्री के लोगों ने उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की…