नई दिल्ली: 19 मई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने एक श्रीलंकाई नागरिक की भारत में शरण मांगने वाली याचिका को खारिज कर दिया है। कोर्ट ने कहा कि भारत दुनिया के सभी विदेशी नागरिकों के लिए शरणस्थल नहीं है। जजों की पीठ ने यह भी बताया कि भारत पहले ही 140 करोड़ से अधिक की आबादी से जूझ रहा है, इसलिए हम सबको शरण नहीं दे सकते।

याचिकाकर्ता को 2015 में माओवादी संगठन लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) से संबंध होने के शक में गिरफ्तार किया गया था। उसे गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम और विदेशी अधिनियम के तहत दोषी ठहराया गया था। उसे कुल 10 साल की सजा मिली थी, जिसे मद्रास हाई कोर्ट ने 2022 में 7 साल कर दी थी। सजा पूरी होने के बाद उसे देश निकाला जाना था।

याचिकाकर्ता ने भारत में रहकर अपनी जान को खतरा होने की बात कही थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस दावे को खारिज करते हुए कहा, “भारत धर्मशाला नहीं है, आप किसी और देश जाइए।” कोर्ट ने भारत के विशाल जनसंख्या दबाव का हवाला देते हुए शरण देने से इनकार कर दिया।

यह फैसला भारत की सीमित क्षमता और सुरक्षा व मानवाधिकारों के मुद्दों पर न्यायपालिका के दृष्टिकोण को स्पष्ट करता है। यह भी बताया गया कि भारतीय संविधान की धारा 19 और 21 मुख्य रूप से भारतीय नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करती हैं।

इस मामले ने भारत में आप्रवासन, राष्ट्रीय सुरक्षा और मानवाधिकारों से जुड़ी जटिल समस्याओं को सामने लाया है।