नई दिल्ली: पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत सरकार ने 1960 में पाकिस्तान के साथ हुई ऐतिहासिक सिंधु जल संधि को निलंबित कर दिया है। यह संधि अब तक चार युद्धों, सीमा पार आतंकवाद और दोनों देशों के बीच दशकों की कटुता के बावजूद भी प्रभावी रही थी। भारत के विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने स्पष्ट किया है कि जब तक पाकिस्तान सीमा पार आतंकवाद को विश्वसनीय रूप से बंद नहीं करता, तब तक यह संधि स्थगित रहेगी।

भारत ने इस निर्णय के साथ कई अन्य कूटनीतिक कदम भी उठाए हैं, अटारी बॉर्डर चेक पोस्ट को बंद किया गया है, SAARC वीजा रद्द कर दिए गए हैं और पाकिस्तानी उच्चायोग के कई अधिकारियों को निष्कासित कर दिया गया है। हालांकि, सिंधु जल संधि का निलंबन सबसे प्रभावशाली कदम माना जा रहा है क्योंकि इसका सीधा असर पाकिस्तान की जल और सिंचाई प्रणाली पर पड़ सकता है।

संधि के प्रावधानों के अनुसार, भारत को सतलुज, व्यास और रावी नदियों का पूर्ण जल अधिकार प्राप्त है, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का पानी मिलता रहा है, जो कुल जल प्रवाह का लगभग 80% है। अब भारत इन पश्चिमी नदियों पर जलाशयों के निर्माण और जल प्रवाह संबंधी जानकारी साझा करने से इनकार कर सकता है, जिससे पाकिस्तान की कृषि और पीने के पानी की आपूर्ति पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है।

यह फैसला भारत की “जीरो टॉलरेंस” नीति को दर्शाता है और यह पाकिस्तान को स्पष्ट संदेश देता है कि अब आतंकवाद को किसी भी रूप में सहन नहीं किया जाएगा। भविष्य में ऐसे और भी कूटनीतिक और रणनीतिक कदम उठाए जा सकते हैं, यदि पाकिस्तान की गतिविधियाँ नहीं बदलतीं।