
प्रो. संजय द्विवेदी, भारतीय जनसंचार संस्थान (आईआईएमसी), नई दिल्ली के पूर्व महानिदेशक और माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के आचार्य हैं। अपने 14 वर्षों की सक्रिय पत्रकारिता के दौरान उन्होंने प्रमुख समाचार पत्रों में संपादक के रूप में कार्य किया और अब तक 35 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं। वर्तमान मीडिया की दशा, टीवी डिबेट्स, प्रधानमंत्री मोदी की मीडिया में छवि और पत्रकारिता के बदलते स्वरूप पर उनके बेबाक विचार।

प्रो. द्विवेदी ने टीवी चैनलों की प्रवृत्ति पर सवाल उठाते हुए कहा कि दृश्य माध्यम की अपनी शक्ति और सीमाएं हैं, जहां ड्रामा ज़रूरी हो गया है और लोकप्रियता की दौड़ में गंभीर विमर्श दब जाता है। पाकिस्तान जैसे विषयों पर जरूरत से ज्यादा चर्चा हो रही है, पर उसका कोई ठोस लाभ नहीं दिखता। उन्होंने यह भी कहा कि देश में पत्रकारों की कमी नहीं है, बल्कि हर माध्यम के लिए उपयुक्त पत्रकार मौजूद हैं। प्रिंट, टीवी और डिजिटल मीडिया की अपनी विशिष्टताएं हैं और हर जगह अच्छे और प्रशिक्षित लोग काम कर रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर मीडिया के नजरिए पर उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि मोदी का नाम इतना बड़ा हो गया है कि विरोध और समर्थन, दोनों से लोग फायदा उठा रहे हैं। उन्होंने इसे ‘ब्रांड मोदी’ की शक्ति बताया। उन्होंने अंधविरोध और अंधसमर्थन दोनों को गलत ठहराते हुए कहा कि किसी भी राष्ट्रनेता का मूल्यांकन गुण-दोष के आधार पर होना चाहिए, न कि भावनाओं के अतिरेक से।
प्रो. द्विवेदी ने यूट्यूब और डिजिटल माध्यमों पर मोदी को केंद्र में रखकर हो रहे व्यावसायिक लाभ पर टिप्पणी करते हुए कहा कि मोदी के नाम पर पूरा व्यापार चल रहा है, परंतु यह स्वस्थ पत्रकारिता नहीं है। उन्होंने इसे ‘सुपारी पत्रकारिता’ कहा, जिसमें बिना ठोस आधार के विरोध किया जाता है। उन्होंने नरेंद्र मोदी को एक ऐसा व्यक्ति बताया, जिसने जीवन का अधिकांश समय सार्वजनिक जीवन में बिताया है और जिन पर भ्रष्टाचार या परिवारवाद का कोई दाग नहीं है।
संघ की विचारधारा और मीडिया में उसकी उपस्थिति को लेकर उन्होंने स्पष्ट किया कि संघ प्रचार से दूर रहता है, लेकिन समाज की जिज्ञासा के चलते संघ के समर्थकों की मौजूदगी चैनलों पर दिखाई देती है। इसे घुसपैठ कहना अनुचित है।
पत्रकारों के फील्ड से दूर रहने की प्रवृत्ति पर उन्होंने सोशल मीडिया और मीडिया विस्तार को कारण बताया, लेकिन यह भी स्वीकारा कि घटनास्थल से प्रत्यक्ष रिपोर्टिंग में कमी आई है। फिर भी, जिला स्तर तक मीडिया की गहरी पैठ को उन्होंने पत्रकारिता का विस्तार बताया।
वर्तमान अखबारों की सत्ता के प्रति कथित चिरौरी प्रवृत्ति पर उन्होंने कहा कि अब अखबार काफी बदल गए हैं और वे आम आदमी की ज़रूरतों को केंद्र में रखकर खबरें दे रहे हैं। राजनीतिक खबरों का दायरा भी सिकुड़ा है। उन्होंने सुझाव दिया कि हमें वर्तमान पत्रकारिता को पुरानी दृष्टि से नहीं आंकना चाहिए।
सरकारी विज्ञापनों के दबाव में अखबारों की स्वतंत्रता पर उन्होंने कहा कि सरकारों को मीडिया के प्रति उदार रवैया अपनाना चाहिए। किसी भी आलोचनात्मक खबर पर विज्ञापन बंद करना गलत है, लेकिन यह प्रवृत्ति केवल केंद्र में नहीं, राज्यों में भी देखी जा सकती है।
संगीत और साहित्य के प्रति अपने प्रेम को साझा करते हुए प्रो. द्विवेदी ने बताया कि वे जगजीत सिंह की गज़लें, भजन, और सुंदरकांड सुनना पसंद करते हैं। हाल ही में उन्होंने श्री रामबहादुर राय की पुस्तक ‘भारतीय संविधान – एक अनकही कहानी’ पढ़ी, जिसे उन्होंने गहराई से विचारोत्तेजक और संवेदनशील बताया। साथ ही, सुधीरचंद्र की ‘गांधी – एक असंभव संभावना’ को उन्होंने गांधी की अंतर्व्यथा और सत्य के संघर्ष की मार्मिक अभिव्यक्ति बताया।
यह साक्षात्कार केवल एक पत्रकार की बातें नहीं, बल्कि विचारशील चिंतन, अनुभव और मूल्यों से भरपूर संवाद था, जो आज के मीडिया विमर्श को दिशा दे सकता है।
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