राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत द्वारा भारत की घटती प्रजनन दर पर चिंता जताने के बाद यह विषय राजनीतिक और सामाजिक हलकों में चर्चा का केंद्र बन गया है। नागपुर में ‘कठाले कुलसम्मेलन’ के दौरान भागवत ने जनसंख्या नियंत्रण और परिवारों की भूमिका पर जोर देते हुए कहा कि भारत की कुल प्रजनन दर (टीएफआर) 2.1 के बजाय कम से कम 3 होनी चाहिए।
भागवत ने आगाह किया कि यदि किसी समाज की प्रजनन दर 2.1 से नीचे चली जाती है, तो वह विलुप्त होने के कगार पर पहुंच सकता है। उन्होंने कहा कि इतिहास में ऐसी कई भाषाएं और संस्कृतियां हैं, जो जनसंख्या में गिरावट के कारण समाप्त हो चुकी हैं। भागवत ने जनसंख्या संतुलन बनाए रखने की आवश्यकता पर जोर दिया और इसे राष्ट्रीय हित में आवश्यक बताया।
उनके इस बयान को लेकर सियासी गलियारों में हलचल तेज हो गई है। विपक्षी दलों ने भागवत की टिप्पणी को सांप्रदायिक दृष्टिकोण से जोड़कर आलोचना की, जबकि भाजपा और आरएसएस समर्थकों ने इसे देशहित में एक दूरदर्शी चेतावनी करार दिया।
भागवत ने यह भी कहा कि देश को ऐसी जनसंख्या नीति अपनानी चाहिए, जो सभी पर समान रूप से लागू हो, ताकि किसी समुदाय में असंतुलन न पैदा हो। इस बयान के बाद जनसंख्या नियंत्रण की नीतियों और प्रजनन दर को लेकर विशेषज्ञों और नेताओं के बीच नई बहस शुरू हो गई है। जानकारों का मानना है कि यह मुद्दा भविष्य में और अधिक तूल पकड़ सकता है।


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