
स्पेडेक्स मिशन के लॉन्च के साथ भारत अंतरिक्ष-डॉकिंग तकनीक में महारत हासिल करने वाले विशिष्ट देशों के समूह में शामिल होने की दिशा में एक कदम और आगे बढ़ गया है। इसरो ने 220 किलोग्राम वजनी दो छोटे उपग्रहों को कक्षा में स्थापित किया है, जो स्पेस डॉकिंग एक्सपेरिमेंट (SpaDeX) मिशन का हिस्सा हैं। श्रीहरिकोटा के स्पेसपोर्ट से PSLV-C60 पर रात 10 बजे इन उपग्रहों का सफल प्रक्षेपण किया गया। इन उपग्रहों को 475 किलोमीटर की गोलाकार कक्षा में स्थापित किया गया, जहां “चेजर” और “टारगेट” नामक ये उपग्रह अलग-अलग समय पर छोड़े गए।
यूआर राव सैटेलाइट सेंटर के निदेशक एम. शंकरन के अनुसार, इन दोनों उपग्रहों के बीच एक छोटे सापेक्ष वेग के साथ अंतरिक्ष में उनकी दूरी को नियंत्रित किया जाएगा। यदि इसरो इस प्रयास में सफल होता है, तो यह अमेरिका, रूस और चीन के बाद इस तकनीक में महारत हासिल करने वाला चौथा देश बन जाएगा। इसरो अध्यक्ष एस. सोमनाथ ने इसे भविष्य के मिशनों, जैसे चंद्रयान-4 और भारत के प्रस्तावित अंतरिक्ष स्टेशन, के लिए एक महत्वपूर्ण कदम बताया।
इस मिशन के अतिरिक्त PSLV ऑर्बिटल एक्सपेरिमेंटल मॉड्यूल (POEM) ने 24 इनोवेटिव पेलोड को भी कक्षा में पहुंचाया, जिनमें भारत का पहला एस्ट्रोबायोलॉजी पेलोड और अन्य महत्वपूर्ण प्रयोग शामिल हैं। इनमें आरवी कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग द्वारा अंतरिक्ष में आंत के बैक्टीरिया के व्यवहार का अध्ययन, एमिटी यूनिवर्सिटी द्वारा माइक्रोग्रैविटी में पालक की वृद्धि की जांच, और इसरो का अपना CROPS पेलोड शामिल है, जो अंतरिक्ष में बीज अंकुरण का प्रदर्शन करेगा।
निजी क्षेत्र ने भी इस मिशन में योगदान दिया है। अहमदाबाद के स्टार्टअप पियरसाइट ने भारत का पहला निजी सिंथेटिक अपर्चर रडार (SAR) उपग्रह लॉन्च किया, जिसका उद्देश्य समुद्री निगरानी करना है। अन्य निजी कंपनियों जैसे मनास्तु, बेलाट्रिक्स एयरोस्पेस, गैलेक्सआई और टेकमी2स्पेस ने भी अपने-अपने पेलोड भेजे हैं, जिनमें ग्रीन प्रोपल्शन तकनीक, एसएआर सिग्नल प्रोसेसिंग और नैनोसैटेलाइट सबसिस्टम के प्रदर्शन शामिल हैं।
शैक्षणिक संस्थानों का भी इस मिशन में महत्वपूर्ण योगदान रहा। कर्नाटक के एसजेसी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने एक मल्टीमोड मैसेज ट्रांसमीटर पेलोड भेजा है, जो ऑडियो, टेक्स्ट और इमेज संदेश प्रसारित करने में सक्षम है। इसे शौकिया रेडियो सैटेलाइट सेवाओं के लिए डिज़ाइन किया गया है और इसरो के सहयोग से तैयार किया गया है। इस मिशन ने भारत की अंतरिक्ष तकनीक में क्षमताओं को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है।