यह फॉग नहीं, बल्कि प्रदूषण है जो दिल्ली-एनसीआर के वायुमंडल की निचली सतह पर तैर रहा है। ठंड के मौसम में हवा की गति धीमी हो जाने और नमी बढ़ने से प्रदूषण के कण वातावरण में ऊपर उठने के बजाय निचले स्तर पर ठहर जाते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि आसमान में धुंध जैसा दिखाई देने वाला यह दृश्य वास्तव में हानिकारक स्मॉग (धुंआ और धुंध का मिश्रण) होता है, जो सांस लेने में दिक्कत और स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन रहा है।

दिल्ली-एनसीआर में बढ़ते प्रदूषण का बच्चों और वृद्ध जनों पर सबसे अधिक गंभीर असर पड़ रहा है। कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली और शारीरिक संवेदनशीलता के कारण ये दोनों आयु वर्ग वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के प्रति अधिक असुरक्षित होते हैं।

बच्चों में यह प्रदूषण फेफड़ों के विकास को प्रभावित कर सकता है, जिससे उन्हें सांस की बीमारियां, अस्थमा और एलर्जी जैसी समस्याएं हो सकती हैं। लंबे समय तक प्रदूषित हवा में रहने से उनकी शारीरिक और मानसिक विकास पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।

वहीं, वृद्ध लोग पहले से मौजूद स्वास्थ्य समस्याओं, जैसे हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, और श्वसन तंत्र संबंधी बीमारियों के कारण अधिक प्रभावित हो सकते हैं। प्रदूषण उनकी सांस लेने की तकलीफ को बढ़ा सकता है और कई मामलों में यह जानलेवा भी साबित हो सकता है।

डॉक्टरों ने सलाह दी है कि बच्चे और बुजुर्ग जितना संभव हो घर के अंदर रहें, एन95 मास्क का उपयोग करें। इसके अलावा, घर में वायु शुद्धिकरण के उपाय, जैसे एयर प्यूरीफायर का उपयोग या पौधों को लगाना, मददगार हो सकते हैं। यह समय सभी के लिए जागरूकता और सतर्कता दिखाने का है।