संविधान दिवस के मौके पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मैथिली और संस्कृत में संविधान की प्रतियों का विमोचन किया। यह कार्यक्रम संविधान के निर्माण के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था। इस ऐतिहासिक क्षण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, विपक्षी नेता राहुल गांधी, और दोनों सदनों के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी उपस्थित थे।

यह पहल भारतीय भाषाओं के संवैधानिक महत्व को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, खासकर मैथिली के लिए, जिसे 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार द्वारा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया था। इस अवसर पर विशेष डाक टिकट और सिक्के भी जारी किए गए, जो इस महत्वपूर्ण मील के पत्थर को और भी सम्मानित करते हैं।

मैथिली और संस्कृत भाषा में संविधान का अनुवाद एक ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण कदम है। यह मैथिली और संस्कृत को आधिकारिक भाषा के रूप में पहचान दिलाने की दिशा में एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि है। अब संविधान को मैथिली और संस्कृत जैसी दो प्राचीन भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जाएगा, जिससे इन भाषाओं के महत्व और सम्मान में और वृद्धि होगी।

यह पहल भारत में भाषाई विविधता और संस्कृति के सम्मान की दिशा में एक मजबूत कदम है, और यह उन क्षेत्रों के लोगों को संविधान की समझ में मदद करेगा जहां ये भाषाएं प्रचलित हैं।

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान दिवस के मौके पर अपने संबोधन में संविधान निर्माताओं को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि यह संविधान देश के प्रतिभाशाली लोगों की देन है। उन्होंने बताया कि इस संविधान ने भारत की विविधता को अभिव्यक्ति दी है, जिससे देश में विविध भाषाएं, संस्कृतियां और परंपराएं समान रूप से सम्मानित हो सकी हैं।

राष्ट्रपति ने यह भी कहा कि पिछले 75 वर्षों में भारत विश्व बंधु के रूप में उभरा है और आज कृतज्ञ राष्ट्र अपने संविधान निर्माताओं को नमन करता है। उन्होंने महिला सशक्तिकरण की दिशा में हुई प्रगति की सराहना की और महिला सांसदों के योगदान को भी प्रशंसा दी।

उन्होंने जनसुविधाओं पर सरकार के ध्यान केंद्रित करने की कोशिशों को सराहा और कहा कि हमारे संविधान का उद्देश्य है कि कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका मिलकर सामान्य लोगों के हितों के लिए काम करें। इस अवसर पर उन्होंने राष्ट्रीय लक्ष्यों की प्राप्ति में सभी के सहयोग और विविधता में एकता के महत्व पर जोर दिया।